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शत्र जय रास
( ५७६ )
काती पुनिम सेत्र अइ, चडि नइ करइ उपवास । नारकी सउ सागर समउ, नर करइ करमनउ नास ॥६॥ काती परब मोटउ काउ, जिहां सीधा दस कोडि । ब्रह्म स्त्री बालक हत्या, पाय थी नांखइ छोहि ॥७॥ सहस लाख श्रावक भणी, भोजन पण्य विशेखि । सेज साध पडिलाभता, अधिकउ तेह थी देखि ॥८॥
सर्वगाथा ७५
ढाल पांचमी-धन धन अवंती सुकुमाल नइ, एहनी
___ राग-बहराड़ी सेज गया पाय छूटियइ, लीजइ आलोयण एमो जी। . तप जप कीजइ तिहां रही, तीथकर काउ तेमो जी ।१।से.। जिण सोना नी चोरी करी, ए आलोयण तासो जी। चैत्री दिन सेत्रुज चडी, एक करइ उपवासो जी ।२। से. । वस्त्र तणी चोरो करी, सात प्रांबिल सूध थायो जी। काती सात दिन तप कीयां, रतन हरण पाप जायो जी।३। से.। कांसी पीतल वा रजतणी, चोरी कीधी जेणो जी। सात दिवस परमढ करइ, तउ छूटइ गिरि एणो जी ।४। से.। मोती प्रवाली मुंगिया, जिण चोर्या नरनारो जी।
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