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________________ ( ५७८ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि पोरुयाड* जावड करावियउ, ए तेरमो उद्धारो जी ।१६। से.। संवत बार तिरोतरइ, श्रीमाली सुविचारो जी। बाहडदे महतइ करावियउ, ए चवदमउ उद्धारो जी।१७। से.। संवत तेर इकोतरइ, देसलहर अधिकारो जी। समरइ साह करावियउ, ए पनरमउ उद्धारो जी।१८ से.। संवत पनर सित्यासियइ, वैसाख वदि सुभ वारो जी। करमइ दोसी करावियउ, ए सोलमउ उद्धारो जी ।१६। से.। संप्रति कालइ सोलमउ, ए वरतइ छइ उद्धारो जी। नित नित कीजइ वंदना, पामीजइ भव पारो जी ।२० से.। मर्वगाथा ६७ दूहा बलि सेज महातम कहुं, सांभलउ जिम छइ तेम । सूरि धनेसर इम कहइ, महावीर कहइ एम ॥१॥ जेहवउ तेहबउ दरसणी, सेजइ पूजनीक । भगवंत नउ वेस वांदता, लाभ हुवइ तहतीक ॥२॥ श्री सजा ऊपरइ, चैत्य करावइ जेह । दल परमाणू समलहइ , पल्योपम सुख तेह ॥३॥ सैत्रुञ्ज ऊपरि देहरउ, नवउ नीपावइ कोय । जीरणोद्धार करावतां, आठ गुणउ फलहोय ॥४॥ सिर ऊपर गागरि धरि, स्नात्र करावइ नारि । चक्रवति नी अस्त्री थई, सिव सुख पामइ सार ॥५॥ * पोरवाड़, एकोतरइ, I मानता, समो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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