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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
अंबिल करी पूजा करइ, तिण' टंक सूधर आचारोजीशसे.। धांन पाणी रस चोरिया, ते३ भेटइ सिध क्षेत्रो जी। सेज तलहटी साध नई, पडिलाभइ सुध चितो जी।६। से.। वस्त्राभरण जिणे हर्या, ते छूटइ इण मेलो जी।
आदिनाथ नी पूजा करइ, प्रहऊठी बिहुँ वेलो जी।७। से.। देवगुरु नउ धन जे हरइ, ते सुध थायइ एमो जी। अधिक द्रव्य खरचइ तिहां, पात्र पोषइ बहु प्रेमो जी।।से.। गाइ भइंसि घोडा मही, गज गृह चोरणहारो जी। द्यइ ते ते वस्तु तीरथइ, अरिहंत ध्यान प्रकारो जी हासे.। पुस्तक देहरा पारका, तिहां लिखइ आपणउ नामो जी। छूटइ छम्मास६ तप कीयां, सामायिक तिण ठामो जी।१०।से.। कुमारी परिवोजिका, सधव अधव गुरु नारो जी। व्रत भांजइ तेहनइ काउ, छम्मासी तप सारो जी।११।से.। गो विप्र स्त्री बालक रिषी, एहनउ घातक जेहो जी। प्रतिमा आगइ आलोयतउ*, छूटइ तप करि तेहो जी।१२। से.।
सर्वगाथा ८७ ढाल छठ्ठी-रिषभप्रभु पूजीयइ, एहनी
राग-धन्यासिरी सांप्रत कालइ सोलमउ ए, बरतइ छइ उद्धार । सेचूँज जात्रा करूँ ए, सफल करूँ अवतार । १ । से.!
१त्रिण, २ शुद्ध, ३ जे, ४ सिद्ध, ५ शुभ, ६ छमासी * आलोयतां, सिंप्रति
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