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पुञ्जरत्न ऋषि रास
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पुंजरत्न ऋाष रास श्री महावीर ना पाय नम, ध्यान धरूं निशदीश । तीरथ वर्ते जेहनो, वरस सहस इकवीस ॥१॥ साधु साध सहु को क है, पिण साधु छै विरला कोइ । दुःषम काले दोहिलो, सबल पुण्य मिलइ सोय ॥ २॥ पण तप जप नी खप करै, पालइ पंचाचार । सूत्रो बोल्यो साधु ते, वंदनीक व्यवहार ॥३॥ भला दान शील भावना, पिण तप सरिखो नहीं कोय। दुःख दीजइ निज देह नै, 'बाते बड़ा न होय ॥४॥ मुनिवर चउद हजार मई, श्रेणिक सभा मझार । वीर जिणंद वखाणियो, धन धन्नो अणगार ॥५॥ वासुदेव करै वोनति, साधु छै सहस अढार । कुण अधिको जिनवर कहै, ढंढण ऋषि अणगार ॥ ६॥ ए तपसी आगइ हुवा, पणि हिवे कहुँ प्रस्ताव । आजनइ कालइ एहवा, पुञ्जा ऋषि महानुभाव || ७ ॥ श्री पार्श्वचंद ना गच्छ माहे, ए पुञ्जो ऋषि श्राज ।
आप तरै नै तारवै, जिम बड़ सफरी जहाज ॥ ८ ॥ पुञ्ज ऋषि पृच्छा धरम, संयम लीधो सार । कोधा तप जप करा, ते सुणज्यो अधिकार ॥६॥
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