SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 724
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुञ्जरत्न ऋषि रास ( ५५५ ) पुंजरत्न ऋाष रास श्री महावीर ना पाय नम, ध्यान धरूं निशदीश । तीरथ वर्ते जेहनो, वरस सहस इकवीस ॥१॥ साधु साध सहु को क है, पिण साधु छै विरला कोइ । दुःषम काले दोहिलो, सबल पुण्य मिलइ सोय ॥ २॥ पण तप जप नी खप करै, पालइ पंचाचार । सूत्रो बोल्यो साधु ते, वंदनीक व्यवहार ॥३॥ भला दान शील भावना, पिण तप सरिखो नहीं कोय। दुःख दीजइ निज देह नै, 'बाते बड़ा न होय ॥४॥ मुनिवर चउद हजार मई, श्रेणिक सभा मझार । वीर जिणंद वखाणियो, धन धन्नो अणगार ॥५॥ वासुदेव करै वोनति, साधु छै सहस अढार । कुण अधिको जिनवर कहै, ढंढण ऋषि अणगार ॥ ६॥ ए तपसी आगइ हुवा, पणि हिवे कहुँ प्रस्ताव । आजनइ कालइ एहवा, पुञ्जा ऋषि महानुभाव || ७ ॥ श्री पार्श्वचंद ना गच्छ माहे, ए पुञ्जो ऋषि श्राज । आप तरै नै तारवै, जिम बड़ सफरी जहाज ॥ ८ ॥ पुञ्ज ऋषि पृच्छा धरम, संयम लीधो सार । कोधा तप जप करा, ते सुणज्यो अधिकार ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy