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________________ (५५६ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि - - ढाल गुजरात मांहिं रातिजगाम, करडा पटिल गोत्र नो नाम । बाप गोरो माता धन बाई, उत्तम जाति नहीं खोट कांड ॥१०॥ श्रीपार्श्वचंदसरि पाटसमरिचंद्रसरि, श्रीराजचंद्रसूरि विमलचंद सनूरि तेहना वचन सुणि प्रतिबुद्धो, असार संसार जाण्यो अति सुद्धो॥११॥ वैरागइ आपणौ मन वाल्यौ, कुब माया मोह जंजाल टाल्यो। संवत् सोलइसे सित्तरा वर्षे, संयम लीनो सदगुरु परखइ ॥१२॥ दिक्षा महोत्सव अहमदाबादइ, श्रावक कीधौ नवलै नादै। पुञ्जो ऋषि सुद्धो व्रत पालइ, दूषण सघला दूरइ टालइ ॥१३॥ ए ऋषि पुञ्जो सूझतोल्ये आहार, न करै लालच लोम लिगार। ऋषि पुञ्जो अति रूड़ोहोवइ, जिन शासन मांहे शोभ चढावइ ॥१४॥ तेहना गुण गातां मन मांहि, आनंद उपजै अति उच्छाहे। जीभ पवित्र हुवे जस भणतां, श्रवण पवित्र थाये सांभलतां ॥१५॥ ढाल ऋषि पुंजे तप कीधौ ते कडं, सांभलजो सहु कोई रे । आज नइकालै करइ कुण एहेवा, पणि अनुमोदन थाइ रे॥१६॥ आठ उपवासं कीधा पहिली, आठ अति चोवीहार रे । मासक्षमण कीधा दोइ मुनिवर, बीस बीस वे वार रे । १७॥ पक्ष-क्षमण पैंतालीस कीधा, सोल कीधा सोलह वार रे। चउद चउद चवदे बारइ कीधा, तेर तेर करया तेरह रे ॥१८॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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