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पद्मावती-बाराधना
कुंभार नइ भवि जे किया, नीमाइ पजामा । तेली भवि तिल पीलिया, पापी पेट भराव्या ॥०॥१६॥ हाली नइ भवि हल खड़या, फाड्या पृथिवी पेट।। सूड़ निंदाण किया घणा, दीधी वलद थपेट ॥ते॥१७॥ माली नइ भवि रोपिया, नाना विधि वृक्ष । मूल पत्र फल फूल ना, लागा पाप लक्ष ॥०॥१८॥ श्रद्धोवाई अांगमी, भरथा अधिका भार । पोठी ऊंठ कीड़ा पड़या, दया न रही लगार ।। ते०॥१६॥ छींपा नइ मवि छेतरघउ, कीधा रांगणि पास । अगनि आरंभ किया घणा, धातुर्वाद अभ्यास ।। ते०॥२०॥ सूरपणइ रण जूझता, मारया माणस वृन्द । मदिरा मांस माखण भख्या,ख धामूला नइ कंद॥ ते ॥२१॥ खाणि खणावी धातु नी, पाणी उलिंच्या। आरंभ कीधा अति घणा, पोतइ पाप सच्या ॥ते०॥२२॥ अंगार कर्म किया वली, धरमइ दव दीधा । सुंस कीधा वीतराग ना, कूड़ा कोस पोधा ॥ ते॥२३॥ . बिल्ली भवि उंदरि लीया, गलोई हतियारी। मृढ गमार तणइ भवे, मई ज लीख मारी । ते०॥२४॥ भाभड़-भूजा नइ भवे, एकेन्द्रो जीव । ज्वारि चिणा गोहुँ सेकिया, पाडता रीव ॥ते॥२॥ खांडण पीसण गारि ना, आरंभ अनेक । रांधण इंधण आगि ना, किया पाप उदेक ।। ते०॥२६।।
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