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________________ ( ५५० ) समय सुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि विकथा चार कीधी वलि, सेव्या पंच प्रमाद । इष्ट वियोग पड्या किया, रोदन विषवाद || ते० ॥२७॥ साध अन श्रावक तथा व्रत लेई भांगा । " मूल अनइ उत्तर तथा, मुझ दूषण लागा ॥ ते ० ॥ २८ ॥ सांप बिच्छू सींह चीतरा, सकरा नइ समली । हिंसक जीव तणे भवे, हिंसा कीधी सबली || ते ० ॥२६॥ सूयावड़ दूषण घणा, वलि गरभ गलाया । जीवाणी ढोल्या घड़ा, सील वरत भंजाया || ते ० ॥३०॥ भव अनंत भमतां थकां कीया कुटुम्ब संबंध | त्रिविध विविध करी वासरू, तिण सँ प्रतिबंध || ते ० ॥ ३१ ॥ भव अनंत भमतां थकां कीया देह संबंध | त्रिविध त्रिविध करी वोसरू, तिरण में प्रतिबंध ॥ ते ० ॥ ३२ ॥ भत्र अनंत भमतां थकां किया परिग्रह संबंध | त्रिविध विविध करो वोसरू, तिरण सँ प्रतिबंध || ते ० ॥ ३३ ॥ इस परिभवि परभवइ, कीधा पाप अत्र । त्रिविध त्रिविधकरी वोस, करूं जनम पवित्र || ते ० ||३४|| राग arreी जे सुखइ, ए त्रीजी ढाल' | समयसुन्दर कइ पाप थी, छूटइ ते ततकाल ॥ ते ० ॥३५॥ इति आराधना संपूर्ण । ( स्वय लिखित पत्र से ) ● १ वास्तव में यह स्वतन्त्र कृति न होकर चार प्रत्येक बुद्ध चौकी एक ढाल है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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