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(५४८ ) ·
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
देवता तिरियंच नारकी, च्यार च्यार प्रकासी। चउदह लाख मनुष्य ना, ए लाख चउरासी ॥४०॥५॥ इणि भवि परवि सेविया, जे पाप अढार । त्रिविध विविध करि परिहरू, दुरगति दातार ॥ ते०॥६॥ हिंसा कीधी जीवनी, बोल्या मिरषावाद । दोष अदत्तादान' ना, मैथुन' उनमाद ॥ते॥७॥ परिग्रह मेल्यउ कारिमउ, कोधउ क्रोध विशेष। . मान माया लोभ मई किया, वलि राग नइ द्वषा ।.।। कलह २ करो जीव दूहव्या, दीधा कूड़ा कलंक'३। निंदा कीधो पारकी, रति अरति'५ निसंक ॥ते॥६॥ चाडीखाधी चउतरइ१६, कीघउ थापण मोसउ। कुगुरु कुदेव कुधर्म नउ, भलउ प्राण्यउ भरोसउभाते ॥१०॥ खाकि नइ भवि मई किया, जीव ना बध घात। चिड़ीमार भवि चिड़कला, मारया दिन रात ॥ ते॥११॥ मच्छोगर भवि माछला, झाल्या जल वास । धीवर भील कोली भवे, मृग मांड्या पास ॥ ते॥१२॥ काजी मुल्ला नई भवे, पढी मंत्र कठोर । नीत्र अनेक जबह किया, कीधा पाप अघोर ।। ते॥१३॥ कोवाल नई भवि किया, अकरा कर दंड । बंदिवाण मराविया, कोरड़ा छड़ि दंड ॥ते॥१४॥ परमाहम्मी नइ भवे, दीधा नारकि दुक्ख । छेदन भेदन वेदना, ताड़ना अति तिक्ख ते॥१॥
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