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आलोयणा छत्तीसी
( ५४७ )
हुवे जे पाप ।
वचन जिके वीतरागना, ते तो सही साच । भगवती सूत्र धुरे भणी, वीर नी ए वाच ॥ पा । ३२ ॥ करमदान पनरै कला, वलि पाप हार | खिखि ए सह खामिज्यो, संभारी संभारि ॥ पी. ॥३३॥ इण भव परभव एहवा, कीधा नाम लेइ तूं खामजे, करिजे खरच कोई लागस्यै नहीं, देह नें पण मन वैराग वालजे, सही पामिस सुख ॥ पा ।। ३५ ।। संवत सोल अट्टारपूर, श्रहमदपुर मांहि । समयसुन्दर कहह मई करी, आलोयणा उच्छाहि ॥ पा ॥३६॥
पछताप ॥ पा. ||३४|| नहिं दुख |
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पद्मावती - आराधना
हिंव राणी पदमावती, जीव रासि खमावइ ।
इण वेला आवह ॥ १ ॥ अरिहंत नी साख । चउरासी लाख ॥ ते ० ॥ २ ॥
जाग पशु जगि ते भलं ते मुझ मिच्छामि दुक्कडं, जे महं जीव विराधिया, सात लाख पृथिवी तथा साते अपकाय । सात लाख तेऊकाय ना, साते वलि वाय ॥ ते० ॥ ३ ॥ दस प्रत्येक वनस्पति, चउदह साधार | विति चउरिन्द्री जीवना, विवि लाख विचार || वे ० ॥ ४ ॥
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