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क्षमा छतीसी
(५२३ )
क्षमा छत्तीसी आदर जीव क्षमा गण आदर, म करि राग नइ द्वेष जी । समताये शिव सुख पामीजे, क्रोधे कुगति विशेष जी । आ.।१। समता संयम सार सुणीजे, कल्पसूत्र नी साख जी। क्रोध पूर्व कोडि चारित बाले, भगवंत इण परि भाख जो। आ.।२। कुणकुण जीव तर्या उपशम थी, सांभल दृष्टांत जी । कुणकुण जीव भम्या भव मांहे, क्रोध तणइ विरतंत जी। आ.।३। सोमल ससरे सीस प्रजाल्यउ, बांधी माटी नी पाल जी। गज सुकुमाल क्षमा मन धरतउ,मुगति गयउ ततकाल जी।आ.।४। कुलवालुओ साधु कहातउ, कीधो क्रोध अपार जी। कोणिक नी वेश्या वसि पड़ियउ, रडवड़ियउ संसार जी। आ.।५। सोवनकार करी अति वेदन, वाघ्र संवीट्य सीस जी। मेतारज मुनि मुगते पहुँता, उपशम एह जगीश जी । आ.।६। कुरुड़ अकुरुड़ वे साधु कहाता, रह्या कुणाला खाल जी। क्रोध करी कुगते ते पहुँता, जन्म गमायो आल जी । आ.।७। करम खपावी मुगते पहुँता, खंधकसूरि ना सीस जी। पालक पापीए घाणी पील्या, नाणी मन मां रीस जी । आ.८। अच्चंकारी नारि अच्चंकी, तोउयो पियु सुं नेह जी। बब्बरकूल सह्या दुख बहुला, क्रोध तणा फल एह जी । आ.18 | बाघणे सरब सरीर विलूरयो, ततखिण छोड्याप्राण जी। साधु सुकोशल शिवसुख पाम्या, एह क्षमा ना जाण जी। आ..१०॥
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