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समय सुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
चाड़ चुगल नई राजा रूठउ, जीभ छेदि यह डांभ निलाड़ि। झूठानउ बेसास को न करइ बाहिर काढिनह जड़इ कंवाड़; समय सुंदर कहर झूठा माणस नइसहु को कहइ ए महा लबाड़ | ३४ | ए संसार असार जांगिड़ छोड़ी दीघउ सगलउ रज; पंच महाव्रत पाल सुधा सील वरत पणि धरइ सलज्ज | तप जप किरिया कर उतकृष्टी एहवा पिरण केइक छह अ; समयसुन्दर कहै मई तउ न पलड़, पगि हुँछु' तेहना पगनी रज । ३५ । खाधू पी ली दीधू वसुधा मांहि वधारच वांन । गुरु प्रसादि साता सुख पायउ जिण चंद सूरि ते जुगपरधान । सकलचंद गुरुसांनिधि कीधी सत्यासियइ तन थयउ ज्यांन; समयसुन्दर कहड़ हिवहुँ करिस्यु' उत्कृष्टी करणी भ्रम ध्यान | ३६ | संवत सोलनेउया वरषें श्री खंभाइत नयर मकारि; कीया सवाया ख्याल विनोदइ मुख मंडण श्रवणे सुखकारि । साच एक धरम भगवंत नउ दुरगति पड़तां घई आधार; समयसन्दर कहइ जैन धरम जिहां तिहां हड़ज्यो माह अवतार |३७|
[ संशोधिता प्रतिरियं पत्र ४ स्वयं कविलिखिताः -
इति प्रस्ताव सवायाछत्रीसी समाप्ता । सं० १६४८ वर्षे भाद्रपद सुदि २ दिने | श्री अहमदाबादपाश्र्ववर्त्ति श्री अहम्मदपुरे श्रीपासचंदोपाश्रये चतुर्मास्यां स्थितैः श्रीसमय सुन्दरोपाध्यायैः स्त्रपरार्थं लिखिता । शुभं भवतु लेखकपाठकयोः । ]
१ वि तु रेमन करि संतोष नइ घरि धर्मध्यान ।
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