________________
( ५२४ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
कुण चंडाल कहीजई विहुँ मई,निरति नहीं कहइ देव जी। ऋषि चंडाल कहीजइ विढतो, टालइ वेढ नी टेव जी । आ.११॥ सातमी नरक गयउ ते ब्रह्मदत्त, काढी ब्राह्मण आंख जी। क्रोध तणा फल कडुआ जाणी, राग द्वेष द्यो नांखजी। आ.।१२। खंधक ऋषि नी खाल उतारी, सह्यउ परिसह जेण जी। गरभावास ना दुख थी छूट्यउ, सबल क्षमागुण तेण जी। आ.।१३। क्रोध करी खंधक आचारज, हुप्रो अगनिकुमार जी। दंडक नृप नउ देश प्रजाल्यउ, भमसे भवह मझोर जी । आ.।१४। चंडरुद्र आचारज चलतां, मस्तक दीध प्रहार जी । क्षमा करंता केवल पाम्यउ, नव दीक्षित अणगार जो । आ.|१५॥ पांच वार ऋषि नई संताप्यउ, आणी मन मां द्वष जी। पंच भव सीम दह्यो नंदनादिक,क्रोध तणा फल देख जी। आ.१६। सागरचंद नउ सीस प्रजाली, निशि नभसेन नरिंद जी। समतां भाव धरी सुरलोके, पहुँतो परमानंद जी । आ./१७) चंदणा गुरुणीए घणी निभ्रन्छी, धिक धिक तुझ आचार जी। मृगावती केवल सिरी पामी, एह क्षमा अधिकार जी । आ.|१८| सांब प्रद्युम्न कुमार संताप्यउ, कृष्ण द्विपायन साह जी। क्रोध करी तप नउ फल हारचउ,कीधउ द्वारिका दाह जी। आ.१६। भरत नइ मारण मूठि उपाड़ी, बाहूबलि बलवंत जी। उपशम रस मन मांहे प्राणी, संयम ले मतिमंत जी । आ.॥२०॥ काउसगा मई चढियउ अति कोपे, प्रसन्नचंद्र रिषिराय जी। सातमो नरक तणां दल मेल्यांकडुआ तेणे कषोय जी। आ.।२।।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org