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________________ ( ५१६ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि जगति सृष्टि करता उपगारी, संहरता पणि नागइ खेद; समयसुन्दर कहइ हुँ तो मोनु, करम एक करता भ्र वेद । २ । पंखी ऊडि भइ आकासह, मीन कउ मारग कुंग ग्रहई; तारा मंडल कुरा गिड़ कहउ, माथइ करि कुरा मेरु वहह । बेड़ी बि बाहां करि दरियउ, कुंण तरह भावी कुण कहइ; समयसुन्दर कहइ भेद भली परि, परमेसर कउ कुरण लहइ | ३ | वरण अढार छत्रीस पवन छह, सहुनई गुरु निगुरउ नहि कोइ पण आरंभ कर अगन्यांनी, जीव दया विण धरम न होइ । गुरु तउ ते जे सुद्ध परूपई पग मुकइ जड़गा सुरौं जोइ; आप तरहं अवरां नई तारई, समयसुन्दर कहइ सद्गुरु सोइ । ४ । कष्ट करइ पंचागनि साधइ, जाग होम करइ बहु कर्म; जाई अम्मे मुगति पणि जास्यां, ए तउ सगलउ खोटउ भर्म । आगन्या सहित दया पाली जइ, सगलां धर्मनउ एहिज मर्म समयसुदर कहइ दुरगति पडतां यह डी वांहि श्रीजिन धर्म | ५ | गछ चउरासी दीसह गिरुया पिण ते (हुना) भिन्न २ श्राचार; कहउ हा गछनी कीज विधि, नाणी विण न हुयई निरधार । पण गनी करउ किरिया, पणि म करो परतात लगार; समयसुंदर कहइ हुँ इम जाणुं, इण वात मांहई गणउ सकार । ६ । चंद्रगुपत राजा लह्या सुहणा, तिहां चंद्र दीठउ चालणी समांयः ते तउ बात साची दीसह छह भद्रबाहू सामी नउ न्यांन । जिण सासरा मइ गच्छ गछांतर, हुया घणा वली हुस्यइ तोफान; समयसुंदर कहै आप पराउ, गच्छ काठउ ग्राउ जाणि निधान । ७ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ܘ www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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