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________________ सत्यासीया दुष्काल वर्णन छत्तीसी श्रीमाली श्रावक, गच्छ कामती गिरुयउ पूजा करइ प्रधान, चढावह चांपउ नै मरूयउ । दानबुद्धि दातार, पड्यउ ते दुरभित पेखी; खोल्या धानभखार, अन्न द्यह अवसर देखी । दरसणीसहून अन्न, थिरादरे थोभी लीया; 'समयसुदर' कहइ सत्यासीया, तिहां तु नइ धक्का दीया | २५ | सत्यासीय संहार, कीयउ नरनारी केरउ; श्रादाय वरतावि, ढुंढ ढंढेरउ फेरउ । महावीरथी मांडी, पड्या त्रिण वेला पापी; बारवरषी दुःकाल, लोक लोधा संतापी । पणि एकलइ एक त ते कोयउ, स्युं बार वरसी बापडा; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, बारैर लोके न लह्या लाकडा | २६ | ( ५०६ ) अय्यासोया आगमन - इस प्रस्ताव इंद्र, सभा सुधर्मा बइठउ; दीउ अवधि दुःकाल, पाप भरतमई पइठउ । गिरूड़ श्रीगुजराति, निपट दुखी करि नांखो; सीदास साध, सही हुँ न सकु सांखी । तुरत व्यासीय उ तेडिन, ए हुकम इंद्रह कीयउ 'समयसुन्दर' कहइ अय्यासीया, तुरं मार काढि सत्यासीयर |२७| १ वाटइ. २ थारै ३ घणुं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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