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________________ - - ( ५०८ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जाल सागर जिके साहमी हूया, सहु तेहनइ संतोषिया; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, तें सागरनै न संतापिया (२१॥ कुंवरजी करमसी रतन, बछराज ऊदो वछियाइत; जीवउ सुखीयो जाण, वलि वीरजी विख्याइतः । मनजी कैसव मेल, साह सूरजी सवायउ; पंचपरवी कीयउ पुन, मास च्यार पांच चलायउ । जिनसागर समवाय जस, हाथीशाह- उद्यम हूयउ; 'समयसुन्दर' कहइसत्यासीया, तांसीम साहमीनको हूप्रउ।२२। नागोरी नामजाद, शाहलकोई सुणोयह वस्यउ ते अहमदाबाद, भलउ प्रतापसी भरणीयह । बडउ पुत्र वर्द्धमान, भलउ तिलोकसी भाई; कीजइ पुन्य क्रतूत, इण परि एह बडाई । सांभले बात सत्यासीया, तुम करे केहनई आकुला; प्रतापसीसाहरी प्रौलमई, दीजई रोटी बाकुला ॥२३॥ पाटणमाहि प्रसिद्ध, मोटउ सांमलदास मारू; जयतारणियउ जाण, विच तिण वावों वारू । तपा जतीनइ तेडि, अन्न वे टंक वहिराव्यउ; सो- सवासो साधु सको, शाता सुख पायउ । दोहिला दुखीया दूषला, सत्रकार दीयउ सदा; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, ताहरो बल न चाल्यउ तदा।२४। ३ किया. ४ जिहनी ५ वि छयाइत ६ सादुलट्टककड. सिं० १६८६ में इनसे गच्छभेद हुआ। इनके आग्रह से कविवर ने १८ नात्रक सझाय रची है। - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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