SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 671
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५०२) ..समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि : गदह गाइ नई भेइसि, ऊँट छाली नइ एवड; .. अम्हनइ ए आधार, तियां धणीयां नै त्रेवड । चरिवा मूक्या च्यारि, निजीक निज नगरनी सीमइ; खड त्रणा पिण खाइ, कदाचि ते जीव कीमइ। तेहवइ धाडि कोलीतणी, सगला लेइ१० सामठा; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया; तु तो पड्यउ जठा.तठा ।४। लागी लुटालूट, भयै करि मारम भागा; लतो न मूकड लंठ, नारी नरनिं१ करइ नागा। बइयर २ झाले बंदि१३, मांटोनइ मुह कडा मारइ; बंदीखानइ बंधि ऊन्हीं, घिसी उपरि झारइ । . दोहिलउ दंड माथइ करी, भोख मंगाधि भीलड़ा; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, थारो कालो मुंह पगनीलडा।। भला हुंता भूपाल, पिता जिम पृथ्वी पालइ; नगरलोक नर-नारी, नेहसु नजरि निहालइ । हाकिमनइ हुबो लोभ, धान ले पोतइ धारहः महामुहगा करि मोल, देखि वेचइ दरवारइ । मसकीन लोक पामइ नहीं, लेतां धान'५ लागइ धक्का; . 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, तई कुमति दीधी तिका (७) ७ ना, ८ नीआमोबडु, ६ चारि, १० लेगया, ११ नै, १२ बइरनि, १३ बंद, १४ उन्हां ( उभी) थी (थइ), १५ घबना, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy