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________________ सत्यासीया दुष्काल वर्णन छत्तीसी धान्यादि के भाव सँठि रूपयै सेर, मुग अढी सेर माठा; साकर घी त्रिण सेर, भुण्डौ गुलमाहि भाठा । चोखा गोहुं च्यार सेर, तर तो न मिले तेही; बहुला बाजार बाड१६, अधिक छा हुवै एही । शालि दालि घृत घोल, जे नर जीमता सामठउ; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, तई खवराव्यो बावटउ १७ |७| अपान लहै अन्न, भला नर थया भिखारी; मूकी दीघउ मान, पेट पिए भरइ न भारी । पमाडीयाना पांन के बगरौ नई कांटी : खावै खेजड छोड, शालितूस सबला वांटी । ... अन्नकण चुप के इंटिमें, पीयइ इंटि पुसली भरी; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, एह अवस्था तई करी || ( ५०३ ) मांटी मुकी बहर २, मुक्या बहरै पणि मांटी; बेटे मुक्या बाप, चतुर देता जे चांटी । भाइ मुकी भइण, भइणि पिण मूक्या भाइ अधिक व्हालो अन्न, गइ सहु कुटुम्ब सगाइ । घरवार मुकी माणस घणा, परदेशड़ गया पाधरा; 'समयसुन्दर' कह सत्यासीया, तेही ११ न राख्या श्रधरा ॥ ६ ॥ १६ पाड, १७ बावठो, १ = पमाडिया, १६ कुरण, २० बैरि (बयरि), २१ तह इहां नव राषा आधरा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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