SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 651
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४८२ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि ज्ञान दर्शन चारित करी, जे साधइ हे मुगति नउ पंथ ! अम्हा०।३। चउथउ हे मंगल माहरइ, सहेली हे गावउ श्री जिन धर्म । अम्हा०। भगवंत केवलि भाखियउ, . __ भवियण ना हे भांजइ मन नामर्म। अम्हा०।४। च्यारे मंगल चिरजया, ___ सहेली हे करइ कोड़ कल्याण । अम्हा। समयसुन्दर कहइ सांभलउ, पणि गायइ हे ते तो चतुर सुजाण । अम्हा०।५। चार मंगल गीतम ढाल-महावीर जी देसणा ए, एहनी श्री संघ नइ मंगल करउ ए, मंगल चार परम के । अरिहंत सिद्ध सुसाध जी ए, केवलिभाषित धरम के। श्री०।१ पहिलु मंगल मनि धरु ए, विहरंता अरिहंत के। भविक जीव प्रतिबोधता ए, केवल ज्ञान अनंत के । श्री०।२। बीजउ मंगल मनि धरु ए, सिद्ध सकल सविचार के। आठ करम नउ क्षय करी ए, पहुँता मुगति मझारि के। श्री०।३। त्रीजु मंगल मन धरु ए, सूधा साध निग्रंथ के । निर्मल ज्ञान क्रिया करी ए, साधई मुगति नउ पंथ के। श्री०.४। चरथु मंगल मन धरु ए, श्री जिनधर्म उदार के । चिंतामणि सुरतरु समउ ए, समयसुन्दर सुखकार के। श्री०।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy