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चार मंगल गीतम्
( ४८१)
लालच लोभ करूँ नहीं, छोडूं जीभ नउ स्वाद । सूत्र सिद्धान्त भएँ गण, न करूँ परमाद ॥६॥२०॥ दूषम कालइ दोहिलउ, अधिकउ पंथ एह । वर्ष मास दिन जो पलई। तो पण मलउ तेह ॥७॥ तै०॥ एह मनोरथ माहरउ, फलीजो करतार । समयसुन्दर कहई जिम करू, हूं सफलउ अवतार ॥८॥०॥
चार मंगल गीतम्
अम्हारइ हे आज वधामणा,
सहेली हे गावउ मंगल च्यार । अम्हा०। पहिलउ हे मंगल माहरइ,
सहेली हे गावउ अरिहंत देव । अम्हा। तित्थंकर त्रिभुवन तिलो,
कर जोड़ी हे करि सुरनर सेव । अम्हा०।११ बीजउ हे मंगल माहरइ,
सहेली हे गावउ सिद्ध सहाग । अम्हा। सिद्ध शिला ऊपर रह्या,
जोयण नइ हे चउवीसमई भाग। श्रम्हा०।२। तीजउ हे मंगल माहरइ,
सहेली हे गावउ साधु निनथ। अम्हा।
| मास पाख दिन जउ पलउ ।
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