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( ४८०)
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
मनोरथ गीतम्
राग-आसावरी धन धन ते दिन मुझ कदि होसह, हुँ पालिस संजम सूधोजी। पूरव ऋषि पंथे चालीसु, गुरु वचने प्रति बूझो जी । घ.।१। अनियत भिक्षा गोचरी, रन्न वन्न काउसग लेस्यु जी।। समभाव शत्रु नई मित्र सु, संवेग शुद्ध धरस्युजी । ध.।२। संसार नो संकट थकी, छूटिस जिण अवतार जी। धन्य समयसुन्दर ते घड़ी, पामिस भव नउ पार जी । ध.।३।
_ मनोरथ गीतम्
___ ढाल-जगर सुदरसन अति भलउ अरिहंत देहरई आविनई, प्रतिमा नई हजूर । चारित फेरी ऊचरू, आणी आणंद पूर ॥१॥ ते दिन मुझ नई कदि हुस्यह, थाऊँ साधु निग्रंथ । चारित फेरी ऊचरूँ* पालु साधु नउ पंथ ॥२॥ ते०॥
आपण पइ जाऊँ विहरवा, सूझतउ लू आहार । ऊँच नीच कुल गोचरी, लेऊँ नगर मझार ॥३॥ ते०॥ माया ममता परिहरी, करूं उग्र विहार । उपगरण कांधे आपणइ, न लू नफर कि वार ॥४॥ते०॥ आपउ निंदू आपणउ, न करूँ परताति । चारित ऊपर खप करूँ, दिन नइ वलि राति ॥५॥ ते०॥ * परिगहउ सगल उ परिहरूँ।
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