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________________ चार शरणादि गीतम् चार शरणा गीतम् राग - आसाउरी सिंधुड़उ मुझ नइ चार शरणा हो जो, अरिहंत सिद्ध सुसाधो जी। केवल धर्म प्रकासिय, रतन अमोलिक लाधो जी । मु० | १ | चिहुँ गति ता दुख छेदिवा, समरथ सरणा एहो जी । पूर्वे मुनिवर जे हुआ, तेा किया सरणा तेहो जी । मु०|२| संसार मांहे जीवसुं तां सीम सरणा चारो जी । गणि समयसुंदर इम कह, कल्याण मंगलकारो जी | मु० | ३ | अठारह पाप स्थानक परिहार गीतम् राग - आसाउरी ( ४८३ ) पाप अठारह जीव परिहरउ, अरिहंत सिद्ध सुसाखो जी । लोयां पाप छूटिय, भगवंत इणि परि भाखो जी । पा० | १ | श्रव कषाय दुबंधना, वलि कलह अभ्याख्यानो जी । रतिरति पेसुन निंदा, माया मोस मिथ्या ज्ञानो जी । पा०|२| मन वच काये किया सहु', मिच्छामि दुक्कडं तेहो जी । गणि समयसुन्दर इम कहइ, जिन धरम मरमो एहो जो । पा०|३| Jain Educationa International चौरासी लक्ष जीव योनि क्षामणा गीतम् राग - आसाउरी लख चउरासी जीव खमावई, मन धरि परम विवेको जी । मिच्छामि दुक्कडं दीजियs, त्रिकरण सुद्ध प्रत्येको जी | ल० | १ | १ इ भव परभव जे किया । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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