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सिद्धान्त श्रद्धा-अध्यात्म समाय
(४७७ )
सिद्धान्त श्रद्धा सज्झाय
आज आधार छइ सूत्र नउ, आरइ पांचमइ एह । सुधरम सामी संइ मुखइ, बाउ जंबू नइ तेह ।। प्रा०॥१॥ तीर्थंकर हिवणा नहीं, नहीं केवलो कोई । अतिशयवंत इहां नहीं, संशय भांजइ सोई॥ प्रा०॥२॥ भरत मई जीव भारी कर्मा, मत खांचे गमार । पणि सूत्र में कह्यउ ते खरउ, ए छइ मोटी कार ॥ श्रा०॥३॥
आज सिद्धान्त न हुँत तउ, किम लोक करंत । पणि वीतराग ना वचन थी, ध्रम बुद्धि धरंत ॥ श्रा०॥४॥ इकवीस सहस वरस इहां, जिन धर्म जयवंत । सूत्र तणइ बलि चालस्यां, भाख्यौ भगवंत ॥ प्रा०॥॥ श्री महावीर प्ररूपियउ, धरम नउ मरम एह । समयसुन्दर कहइ सहु, काउ तीर्थकर तेह ॥ ०॥६॥
अध्यात्म सज्झाय
राग-प्रासाउरी इण योगी ने आसन दृढ कीना, पवन बंधि परब्रह्म सुं लीना । इ.१। नासा अग्र नयन दोऊ दीना, भीतरि हंस ढुंढत मन भीना । इ.१२। अपनि पवन दसमें द्वार प्राण्या, प्राणायाम का भेद पिछाण्या । इ.।३। बार अंगुल जल पवने पइसारया, पूरक ध्यान पवन सवारचा।इ.१४।
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