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________________ (४७८ ) समयसुन्दरकृतिकुसमाञ्जलि नाभि कमल थी पवन निसार्या, रेचक ध्यान चपल मन मारया।इ.।। घट भीतरि कियो घट आकारा, नाभि पवन कुंभक आकारा । इ.।६। पवन जीत्या तिण मन भी जीत्या, सोयोगना मेरा सच्चा प्रीता।इ.१७। ज्ञान की बात लहेगा ज्ञानी, समयसुंदर कहइ अातम ध्यानी। इ.८ श्रावक मनोरथ गीतम श्री जिन शासन हो मोटउ ए सहु, जीवदया जिन धर्म। प्रथ्वी प्रमुख हो जीव कह्या जुदा, बलि काउ करता कर्म। श्री.।१। देव कहीजइ अरिहंत देव नइ, गुरु तउ सूधउ साधु । धर्म कहीजइ केवलि भाखियउ, सूधउ समकित लाध । श्री.।२। पंच महाव्रत हो पालइ जे सदा, ल्यइ सूझतउ अाहार । आप तरइ और नइ तारवइ, एहवा जिहां अणगार । श्री./३। समकित धारी होश्रावक जिहां कया,मानइ नहीं मिथ्यात। व्यवहार सुद्धे हो करइ आजिविका, न करइ पर नी वात । श्री.।४। अभक्ष्य न खावइ हो लहुडो बड़उ, अनंत काय नउ सँस । सांझ सवोरइ हो पडिकमणउ करइ,वलि करइ संजम हूंस। श्री.।। पारसनाथ होइम प्ररूपियउ, जिन शासन जयकार । भव भव होज्यो हो समयसुंदर कहइ, इहां म्हारइ अवतार। श्री.।६। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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