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________________ हित शिक्षा गीतम् (४७५ ) गच्छ वास छोड़ नहीं गुणवंत, अकुश कुशील पंचम आरइ। समयसुंदर कहइ सो गुरु साचउ,अाप तरइ अवरां तारइ। ति।३। साधु गुण गीतम् राग-आसावरी धन्य साधु संजम धरइ सूधउ, कठिन दूषम इण काल रे। जाव जीव छज्जीव निकायना, पीहर परम दयाल रे । ध.।१। साधु सहै बावीस परिसह, आहार ल्यइ दोष टालि रे। ध्यान एक निरंजन ध्याइ, वइरागे मन वालि रे । ध.।२। सद्ध प्ररूपक नइ संवेगी, जिन आज्ञा प्रतिपाल रे। समयसुंदर कहइ म्हारी वंदना, तेहनइ त्रिकाल रे । ध.।३। हित शिक्षा गीतम राग-सोरठ पुण्य न मकड विनय न चूकउ, रीस न करिज्यो कोई। देव गुरु नउ विनय करीजइ, काने सुणउ भलाई रे ।११ जिवडा घड़ी दोइ मन राखउ ॥ अांकणी ॥ बूढा ते किम बाल कहीजइ, विरत नहीं जाणउ कोई । एक रुपइयउ खोटउ बांध्यउ, दौड़चउ करैय दगाई रे । जी.।२। मांकर ज्यु जीव हालई डोलई, थांम्यउ किही नी जावइ । नावा ऊपरि आयज बईठउ, आपण आपणइ छदई रे । जी.३। लेखे बइठउ लोभे पईठउ, चार पहुर निश जागइ । दोय घड़ी सामाइक वेला, चोखउ चित्त न राखइ रे । जी.।४। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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