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हित शिक्षा गीतम्
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गच्छ वास छोड़ नहीं गुणवंत, अकुश कुशील पंचम आरइ। समयसुंदर कहइ सो गुरु साचउ,अाप तरइ अवरां तारइ। ति।३।
साधु गुण गीतम्
राग-आसावरी धन्य साधु संजम धरइ सूधउ, कठिन दूषम इण काल रे। जाव जीव छज्जीव निकायना, पीहर परम दयाल रे । ध.।१। साधु सहै बावीस परिसह, आहार ल्यइ दोष टालि रे। ध्यान एक निरंजन ध्याइ, वइरागे मन वालि रे । ध.।२। सद्ध प्ररूपक नइ संवेगी, जिन आज्ञा प्रतिपाल रे। समयसुंदर कहइ म्हारी वंदना, तेहनइ त्रिकाल रे । ध.।३।
हित शिक्षा गीतम
राग-सोरठ पुण्य न मकड विनय न चूकउ, रीस न करिज्यो कोई। देव गुरु नउ विनय करीजइ, काने सुणउ भलाई रे ।११ जिवडा घड़ी दोइ मन राखउ ॥ अांकणी ॥ बूढा ते किम बाल कहीजइ, विरत नहीं जाणउ कोई । एक रुपइयउ खोटउ बांध्यउ, दौड़चउ करैय दगाई रे । जी.।२। मांकर ज्यु जीव हालई डोलई, थांम्यउ किही नी जावइ । नावा ऊपरि आयज बईठउ, आपण आपणइ छदई रे । जी.३। लेखे बइठउ लोभे पईठउ, चार पहुर निश जागइ । दोय घड़ी सामाइक वेला, चोखउ चित्त न राखइ रे । जी.।४।
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