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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
समय
पर प्रशंसा गीतम हूं बलिहारी जाऊँ तेहनी, जेहनउ अरिहंत नाम । जिण ए धरम प्रकाशियउ, कीघउ उत्तम काम ॥ हु०॥१॥ हुँ बलिहारी जाऊँ तेहनी, जे श्री साधु निग्रंथ ।
आप तरइ अउर तारवइ, साधइ मुगति नउ पंथ ॥ हुं०॥२॥ हूँ बलिहारी जाऊँ तेहनी, जे श्री सूत्र सिद्धांत । जिण थी जिन ध्रम चालिस्यइ, दुप्पसह सरि परजंत ॥ हुँ॥३॥ हूं बलिहारी जाऊँ तेहनी, जे गुरु गुरणी गुणवंत । जिण मुझ ज्ञान लोचन दिया, ए उपगार महंत ।। हुं०॥४॥ हुँ बलिहारी जाऊँ तेहनी, जे यइ गुपत कउ दान । पर उपगार करइ सदा, पणि न करइ अभिमान ।। हुं०॥॥ हुं बलिहारी जाऊँ तेहनी, निंदा न करइ जेह । देतां दान वारइ नहीं, हूँ गण ल्य तस एह ॥ हुं०॥६॥ हुँ बलिहारी जाऊँ तेहनी, धरम करइ जे संसार । समयसन्दर कहइ हूं कहुं, धन धन ते नर नार हुँ॥७॥
साधु गुण गीतम् तिण साधु के जाऊँ बलिहारे। अमम अकिंचन कुखी संबल, पंच महाव्रत जे धारे। ति०।११ शुद्ध प्ररूपक नइ संवेगी, पालइ सदा पंचाचारे । चारित्र ऊपर खप करइ बहु, द्रव्यक्षेत्र काल अनुसारे । ति०।२।
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