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( ४६६ )
समयसुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि
बेन्द्रिय प्रमुख जीव जे बहू, रूड़ी परि राखइ ते सहु | जीव एकेन्द्री जयगा सार, व्रत पहिला नउ एह विचार | २ | कन्यादिक बोलइ नहीं कूड़, ते बोलs तो जासह बूड़ । सांचू बोलs ते श्रीकार, ए बीजा व्रत नउ आचार | ३ |
दीधी चोरीनी थि, हासह पणि झालइ नहीं हाथि । जूठउ बोलि न लीजइ जेह, तीजउ व्रत कहीजड़ एह | ४ | पर स्त्री न कीज परिहार, नियत दिवस पोता नी नारि । रागदृष्टि राखीजइ साहि, चउथउ वरत धरउ चित मांहि । ५ । नवविध परिग्रह नउ परिमाण यावजीव करइ हित जाणि । आकास सरीखी इच्छा गमउ, पालउ ए अणुव्रत पांचमउ | ६ | आप वसई तिहां थी छ दिसइ, करइ कोस जाऊँ निज वसई । मन मान्या राखइ मोकला, ए छट्टा व्रत नी अरगला । ७ । भोग न उपभोग बेउ, आपण अंग लागइ जेउ । तेह विगत जे लेवा तणी, सातमउ वरत काउ जगधणी । ८ । आपणा रथ विना उपदेस, पाप नउ दीजड़ नहीं आदेश । पाहुया ध्यान तराउ परिहार, ए आठमा व्रत नउ अधिकार | ६ |
लव गुरु मुख ऊचरह, सावद्य जोग सहु परिहरइ । समता भावइ वि घड़ी सीम, नवमउ सामायक व्रत नीम | १० | सगला वरत तउ संखेव, निरारंभ रहs नितमेव । जां लगि कल कीज जेह, दसमउ देसावगासिक तेह | ११ |
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