________________
श्रावक बारह व्रत कुलकम्
(४६७ )
चौपरवी पज्जूसण परब, वलि कल्याणक तिथि पण सर्व । सावद्य नउज कीजइ समउ, ए पोसउ व्रत इग्यारमउ ।१२। पोसउ पारी नइ प्रहसमइ, जतियां नइ दीघउ ते जिमइ । गुरु ऊपरि ओणी ध्रमराग, ए बारमउ व्रत अतिथि संभाग।१३। बोल्या श्रावक ना व्रत बार, मूल सूत्र सिद्धांत मझार । आणंद नी परि पालउ एह, जिम पामउ भवसागर छेह ।१४। सोलइ सइ नझ्यासी समइ, बीकानेर रह्या अनुक्रमइ । कीधउ बारां व्रत नउ कुलउ,समयसुन्दर कहइ नित सांभलउ।१५॥
श्रावक दिनकृत्य कुलकम्
श्रावक नी करणी सांभलउ, नित समकित पालउ निरमलउ। अरिहंत देव अनइ गुरु साध, भगवंत भाख्यउ धरम अबाध।१। जागइ पाछली रात जिवार, निचल चित्त गुणइ नउकार । काल वेला पडिकमणउ करइ, पाप करम दूरि परिहरइ । २ । पछड़ करइ गुरु मुख पचखाण, जयणा सुपडिलेहण जाण। देव जुहारइ देहरइ जाय, चैत्यवंदन करइ चित्त लगाय । ३ । वलि गुरु वांदी सुणइ वखाण, सूत्र ना पूछइ अरथ सुजाण । जतियां नइ रिहरावी जिमइ, ते भव मांहि थोड़उ भमइ । ४ । सांझइ वलि सामाइक लेइ, मन मान्यउ पचखाण करेइ । थापना ऊपर थिर मन ठवइ, सूधा आवश्यक साचवइ । ५। अणसण सागारी उच्चरइ, सूतउ चारे सरणा करइ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org