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( ४५६ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
त्रीकम त्रिया न धरणि जो, सिर कदी देह । नदी किनारे खड़उ, कदीक समूलो लेह ॥३॥ कंठालो कालो कठण, ऊँची देखी जाड़ा। समयसुन्दर कहइ गुण विना, ते सुकरे ते जाड़ा ॥४
० अन्तरंग श्रृंगार गीतम् हे बहिनी महारउ जोयउ सिणगार हे, बहिनी नीकउ सिणगार; हे बहिनी साचउ सिणगार, जिण आज्ञा सिर राखड़ी रे हां । सिर समथउ व्रत खड़ी रे हां ॥१।। हे बहिनी० ॥ कानइ उगनियां भ्रम बातडी रे हे ब०,
सरवर सामाई चुनी रातड़ी रे । २ । हे। कनक कुडल गुरु देसना रे हां ब०,
___ दान चूड़ा पर देशना रे । ३ । हे। माल मोरइ हियइ हारड़उ रे हां० ब०,
पदकड़ि पर उपमारड़उ रे हां । ४ । हे। मुखि तंबोल सत्य बोलणउ रे हां० ब०,
___पडिकमणउ अंगि लोलणउ रे हो । ५। हे। जिण प्रणाम भालि चंदलउ रे हां० ब०,
नफूली लाज बिंदलउ रे हा०।६। हे। नवकार गुणनउ बीटी गोलनी रे हां० २०,
ज्ञान अंगूठी बहु मोलनी रे हां० । ७। हे।
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