SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 624
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पदेशिक गीतानि तुर्य वीसामा गीतम् ढाल - श्री नवकार मन ध्याइये भार वाहक नइ कह्या भला, वीसामा वीतरागो जी । माथा थी मूकड़ कंधे लहह, मारग मांहि लागो जी ॥ लहि मारग मांहि चलतां, मल नह मूत्र तजड़ जिहां । नाग यक्ष देहरे रहे राते, भार उठारह तिहां ॥ जाव जीव जि थानक बसै, तिहां भार मूकी रहै सुक्खे। ए द्रव्य थकी चारे वीसामा, महावीर कहै मुखे ॥ १ ॥ श्रमणोपासक ते सुखो, वोसामा सुविवेको जी। शील व्रत गुण व्रत सहु, उपवास वरति अनेको जी ॥ 'देसावगासियs । वलि पर्व दिवसे करs पोसउ, ए भगवंते भाषिय | संलेखना करे सुद्ध बेहड़े, भाव वीसामा कया । ठाणांग सूत्र में चौथे ठाणइ, समयसुन्दर सरदद्या ॥२॥ Jain Educationa International -:०: प्रीति दोहा ( ४५५ ) कागद थोड़ो हेत घउ, सो पिग लिख्यो न जाय । सायर मां पाणी घाउ, गागर में न समाय ॥ १ ॥ प्रीत प्रीत ए सहु को कहड, प्रीति प्रीति में फेर । जब दीवा बड़ा किया, तब घर में भया अंधेर ||२|| For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy