SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 623
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४५४ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जति आतम वस्त्र करम मल मइलो, तप जल धोई निरमल करउ । समयसुंदर कहइ जेम भविक तुमइ,मुगति रमणी सुख लीला वरउ।३। भावना गीतम राग-अधरस भाल भावना भावज्यो रे भवियां. जिम लहउ भवनउ पार । गयवर चढिया केवल पाम्यु, जोवउ मरुदेवी अधिक र । भा.॥१ वंस उपरि इला पुत्र नइ, भरत नइ भवन मझारि । भावना मन मांहिं भावतां, उपन्यउ केवल उदार । भा.।२। दान शील तप तउ भला रे, भावना हुयइ जो उदार । भाव रसायण जोग अछइ रे, समयसुन्दर कहइ सार । भा.।३। दान-शील-तप-भावना गूढा गीतम् राग--गूजरी ग्रहपति पुत्र क्रतूत करउ। दशमुख बंधु निवाज क नारी, अग्नि धरयउ मृधरउ । ग्र.।१। ज्योतिष जाण सहोदर नामे, तसु यक्ष पिशुन खरउ । तसु प्रिय रति आगलि रति रवि कउ, अधिक निकउ आदरउ । ग्र.२। दधितनया प्रियु लघु बांधव चित, चिंतव्यउ ते आदरउ । समयसुन्दर कहइ क क गलइ जिम, ते लहि तुरत तरउ । ग्र.।३। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy