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औपदेशिक गीतानि
(४५१ )
विषय निवारण गीतम्
राग-केदारउ रे जीव विषय थी मन वालि । काम भोग संयोग झंडा, नरक दुख निहाल || रे ॥१॥ अल्पकाल विषय तणा सुख, दुख धइ बहु काल । बलवंत विषय नइ लोम बेहुँ, टालि जीव जंजाल ॥रे ॥२॥ मानखौ भव लही दुरलभ, मत गमाडइ प्रालि । समयसुन्दर कहइ आपनइ, सूधु संयम पाल ॥रे० ॥३॥
निंदा परिहार गीतम
राग-सबाब निंदा न कीजइ जीव पराई,
निंदा पापइ पिंड भराई । नि०॥१॥ निंदक निच्चय नरगइ जाई,
निंदक चउथउ चंडाल कहाई ॥ निं० ॥२॥ निंदक रसना अपवित्र होई,
निंदक मांस भक्षक सम दोई ।। निं० ॥३॥ समयसुन्दर कहइ निंदा म करिज्यो,
परगुण देखि हरख मनि घरज्यो। नि०॥४॥
निंदा वारक गीतम् निंदा म करजो कोइ नी पारकी रे,
निंदा ना बोल्या महा पाप रे ।
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