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________________ ४५० ) समयसुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि कहां रावण कहां राम कहां नल, कहां पांडव परधान । इण जग कुणकुण आइ सिधारे, कहि नई तूं किस थान । मू. २ | आज के कालि आखर अंत मरणा, मेरी सीख तूं मान । समयसुन्दर कह थिर संसारा, धरि भगवंत का ध्यान । मू. | ३ | मान निवारण गीतम् राग - केदारा गउड़ी किसी के सब दिन सरिखे न होई । ग्रह ऊगत अस्तंगत दिनकर, दिन मई अवस्था दोई । कि . । १ । हरि बलभद्र पांडव नल राजा, रहे वन खंड रिधि खोई । चंडाल कर घरि पाणी आण्यउ, राजा हरिचंद जोई । कि. | २ | गरम कर रे तूं मूढ गमारा, चढत पड़त सब कोई । समयसुन्दर कहर ईरत परत सुख, साचउ जिन धर्म सोई । कि. | ३ | 1 Jain Educationa International यति लोभ निवारण गीतम् राग - रामगिरि I चेला चेला पदं पदं, पुस्तक पाना लोभ मदं । चे. भार भूत म मेलि परिग्रह, संयम पालहु साच वदं । भाई चे . । १ । मन चेला पद साध की पदवी, पुस्तक धरि शुभ ध्यान मुदं । समयसुंदर कह अपणे जिय कुं, अविचल एक मुगति संपदं । भा. चे. २ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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