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औपदेशिक गीतानि (४४६ ) औपदेशिक गीत क्रोध निवारण गीतम्
राग-केदारउ जियुरा तुम करि किण सरोस । जि० । जु कछु जीय तुदुखु पामइ, देहु करम कु दोस । जि.।१। हां पारकी निंदा पाप हइ बहु, म कहि मरम नइ मोस । आप स्वारथ मिले सब जण, किण ही कान भरोस । जि.।२। हां हो क्षमा गयसुकमाल कीनी, सासता सुख ओस । समयसन्दर कहइ क्रोध तजि करि, धरे धरम संतोस । जि.३।
हुंकार परिहार गीतम
___राग-तोड़ी जहां तहां ठउर ठउर हूं हूं हूं। ज० । कहा अति मान करइ तूं । ज०॥ इण जगि कुण कुण आइ सिधारे, तूं किस गान में हइ रे गमारे ॥ ज०॥१॥ इहु संसार असार असारा । समयसुन्दर कहइ तजि अहंकारा ॥ज०॥२॥
मान निवारण गीतम
राग-केदारा गउड़ी मूरख नर काहे तुकरत गुमान। "तन धन जोवन चंचल जीवित, सहु जग सुपन समान ।।१।
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