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( ४४८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
छती रिद्धि कदि छोडसं, थोड़ी घणी जेह । आरंभ नउ मूल ए कही, तीर्थकरे तेह । क० । २। गृहस्थावास छोड़ी करी, होस्यु हूं अणगार। संयम सधैं पालस, पामिसी भव पार । क०।३। अंत समय संलेखना, कदि करस्युशुद्ध ।
.....................।क०।४। ठाणांग सूत्र माहे कही, ए तीजे ठाणे । सुधर्मा स्वामी कहै जंबू ने, समयसुन्दर वखाणे । क० ।५।
इह पर.............
वैराग्य सज्झाय
मोक्षनगर मारु सासरू, अविचल सदा सुखवास रे।
आपणा जिनवर नइ भेटियइ, त्यां करउ लील विलास मो.।१। ज्ञान दर्शन आणे आविया, करो करो भक्ति अपार रे। शील सिणगार पहरो पदमणी,उठि उठिजिन समरोसार रे।मो.२। विवेक सोवन टीलँ तपतपे, साचो साचो वचन तंबोल रे। संतोष काजल नयणे भां, जीवदया कुंकुम घोल रे । मो.॥३॥ समकित बाट सोहामणी, संयम वहेल उजमाल रे।. तप जप बलदिया जोतर्या, भावना रास रसाल रे।मो.४। कारमो सासरो परिहरो, चेतो चेतो चतुर सुजाण रे। समयसुन्दर मुनि इम भणइ, त्यां छई भवि निरवाण रे ।मो.।।
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