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श्रौपदेशिक गीतानि
(४४७)
जीवदया गीतम्
राग भूपाल हां हो जीवदया धरम वेलडी, रोपी श्री जिनराय । जिन सासण था] जिहां, ऊगी अविचल आइ । हां०जी०११ हां हो समकित जल सीची थकी,बाधी जयणा सुहाय । गुपति मंडपि ऊंची चडी, सुख शीतल छाय । हां०जी०१२। हां हो व्रत साखा तप पानडा, रूड़ि रिद्धि ते फूल। समयसुन्दर कहइ मुगति ना, फल आपइ अमूल । हां०जी०।३।
वीतराग सत्य वचन गीतम्
राग-भूपाल हां हो जिन ध्रम जिन ध्रम सहु कहइ, थापइ आपइ अपणी बात । समाचारी जूजुई, कहउ किम समझात । जि० ११ हां हो चंद्रगुपत राजा हुयउ, सुहणउ दीठउ एम। चंद्र थयउ जाणु चालणी, जिण सासण तेम । जि०।२। हां हो अम्हे साचा झूठा तुम्हे, ए मूकउ टेव। समयसुन्दर कहइ सत्य ते, वदइ वीतराग देव । जि०।३।
कर्म निर्जरा गीतम् ___ ढाल-जणणी मन आस्या पणी कर्म तणी कही निर्जरा, थाये त्रिहुं ठामे । श्रमणोपासक नइ कही, रूड़े परिणामे । क०।१।
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