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________________ समय सुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि कुण गंगा वेलु करण कुं गिगइ, कुण माथइ करि मेरु बहह री | कु० | २ | क्रोध मान माया लोभ जीपह, जो तपस्या करि देह दहह री । समयसुन्दर कहइ ते लहह तिकु जे जोग ध्यान की जोति रहइ री | कु० । ३ । निरंजन ध्धान गीतम् राग - वयराड़ी ( ४४६ ) हां हमार परब्रह्म ज्ञानं । कुण माता कुण पिता कुटुम्ब कुण, सब जग सुपन समानं । हां. । १ । तप जप किरिया कष्ट बहुत हइ, तिरा कु तिल भी न मानं । समयसुन्दर कहइ कोइक समझइ, एक निरंजन ध्यानं | हां ॥२॥ परब्रह्म गीतम् राग - वयराड़ी हुं हमारे परब्रह्म ज्ञानं । कुण देव कुण गुरु कुण चेला, अउर किसी कुं न मानं रे । हुँ० | १ | कुण माता कुण पिता कुटुंब कुण, सब जग सुपन समानं । लख अगोचर अकल सरूपी, पर ब्रह्म एक पिछानं । हुँ० |२| इंद्रजाल इंद्रधनुष ज्युँ, तन धन अनित्य हुं जानं । समयसुन्दर कहइ कोइ समझह, एह निरंजन ध्यानं रे । हुँ० | ३ | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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