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________________ ( ४४२ ) समय सुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि विन अपराध तजह को बालंभ, पंच राति वलि देख ॥ रू. ॥ ३ ॥ हंस कहइ हूं न रहूं परवश, संबल द्य मुझ साथ । समयसुन्दर कहै ए परमारथ, हंस नहीं कि हाथ ॥ रू.॥४॥ जीव कर्म संबन्ध गीतम् राग - भूपाल जीव नइ करम माहो मांहि संबंध, अनादि काल नउ कहियह रे । ए पहिलउ ए पछड़ न कहियह, धातु उपल भेद लहियइ रे ॥ जी० ॥ १ ॥ तप जप अनि करी नइ एहनउ, दुष्ट करम मल दहियह रे । समयसुन्दर कहर एहिज श्रातमा, सिद्ध रूप सरदहियइ रे || जी० ॥ २ ॥ सन्देह गीतम् राग-भूपाल करम अचेतन किम हुयउ करता, कहउ किम सकियइ थापी रे । परमेसर पि किम हुइ करता, धड़ दुख तउ ते पापी रे । क. । १ । आरसा मांहि मुहडउ दीसर, कहउ ते पुदगल केहा रे । जीव अरूषी करम सरूपी, किम संबंध संदेहा रे । क. | २ | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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