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________________ ( ४३६ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि कह काया जीव कंत नइ, जागता रहउ मोरा स्वाम रे । ध्यान धरम सुख भोगवउ, ल्यउ भगवंत रउ नाम रे । नी । ३ । धन पर रहइ सावतउ, हुसियारी भली होइ रे । समयसुन्दर कहइ जागता, छेतरी न सकइ कोई रे । नी । ४ । I निद्रा गीतम् सोइ सोइ सारी रयणि गुमाई, वैरण निद्रा तु कहां से आई । सो० । निद्रा कहइ मई तर बाली रे भोली, बड़े बड़े मुनिजन कुं नाखु रे ढोली || सो० ॥ १ ॥ निद्रा कहइ मई तउ जमकी रे दासी, एक हाथ मूकी एक हाथ फांसी || सो० ||२॥ समयसुन्दर कहइ सुनो भाई बनिया, डूबे सारी डूब गई दुनिया || सो० || ३ || पठन प्रेरणा गीतम् राग- भयरव भउ रे बेला भाई भउ रे भाउ, Jain Educationa International भण्या रे माणस नइ आदर घाउ || भ. || १ || १ धरम करम सगली परइ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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