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स्वार्थ गीतम्
( ४३५)
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स्वार्थ गीतम
राग-आसाउरो स्वारथ की सब हइ रे सगाई,
कुण माता कुण बहिन रि भई ।। स्वा० ॥१॥ स्वारथ भोजन भगति सजाई,
स्वारथ बिण कोऊ पाणी न पाई ॥ स्वा० ॥२॥ स्वारथ मां बाप सेठ बड़ाई,
स्वारथ बिण नित होत लड़ाई ।। स्वा० ॥३॥ स्वारथ नारी दासी कहाई,
स्वारथ विण लाठी ले धाई । स्वा० ॥४॥ स्वारथ चेला गुरु गुरहाई,
स्वारथ सब लपटाणा भाई ॥ स्वा० ॥५॥ समयसुन्दर कहइ सुणउ रे लोगाइ,
साचा एक हइ धरम सखाई ॥ स्वा० ॥६॥
अंतरंगबाह्यनिद्रानिवारणगीतम् नींद्रड़ी निवारो रहो जागता, वालिभ म करि विश्वास रे। सांप सिरहाणे सूतो ताहरइ रे, चोर फिरइ चिहुँ पास रे। नी..१॥ जिण पूठइ दुसमण फिरइ, गाफिल किम रहइ तेह रे । सूतां री पाडा जिणइ, दृष्टान्त कहइ सहु एह रे । नी.।२।
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