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पठन प्रेरणा गीतम्
भण्या नह हुयह भलउ विहरावणउ,
सखर वस्त्र पहिरण ओढणउ ॥ भ. ॥२॥
पद हुयइ वाचक पाठक ताउ, बाजउठई चड़ी भयां पाखइ दुख पाप देखाउ,
बइस उ ॥ भ. ॥३॥
कांधर झोली हाथ मइ दोहराउ || भ॥ ४ ॥
समयसुन्दर कउ सबद मानण्उ,
( ४३७ )
इह लोक परलोक सोहामणउ ॥ भ. ॥५॥
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क्रिया प्रेरणा गीतम्
राग-भयरव
क्रिया करउ चेला क्रिया करउ,
क्रिया करउ जिम तुम्ह निस्तरउ । क्रि० | १| पड़िलेहउ उपग्रण पातरउ,
जयगा सुं काजउ ऊधरउ | क्रि० |२| पड़िकमतां पाठ सुध ऊचरउ,
सह अधिकार गमा सांभरउ | क्रि० | ३ | काउसग करता मन पांतरउ,
चार अंगुल पग नउ तरउ । क्रि० |४| परमाद नई आलस परिहरउ,
तिरिय निगोद पड़ा थी डरउ । क्रि० |५|
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