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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
केई मुया गया पणि केई,
केई जूया रहइ परदेस । पासि रहइ ते पीड़ न जाणई,
. कहियइ घणउ तउ थायइ किलेस ॥२॥ जोड़ घणी विस्तरी जगत मई,
प्रसिद्धि थइ पातसाह पर्यंत । पणि एकणि वात रही अणूरति,
न कियउ किण चेलइ निश्चिन्त ॥३॥ समयसुन्दर कहइ सांभलिज्यो,
देतउ नही छु चेलां दोस । जिन आज्ञा न पाली जमंतरि,
तउ शिष्यां दिसि किसउ करूसोस ॥४॥ समयसुन्दर कहइ कर जोड़ि,
ऊपरला सुणिजे अरदास । मनोरथ एक धरूंछु ध्रम रउ,
ए लूँ पूरि अम्हारी आस ॥५॥ जीव प्रतिबोध गीतम्
राग-मारुणी. जागि जागि जंतुया तु, काइ निचिंतउ सोवइ री ।जा.। तनु छाया मिस मरण तो', आपणी घात जोवइ री जा.।१।
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