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(४१६) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि मूयउ कहइ तिके नर मूरिख,
जीवइ जगि जोगी सुत जाण ॥ सं०॥१॥ दीपक वंश मंडायउ देहरउ,
अद्भत करण धर यउ अधिकार । नलिनि गुल्म विमान निरखवा,
सोम सिधायउ सरग मझार ॥ सं०॥२॥ मोटा सबल प्रासाद मंडायउ,
करिया मांड्यउ सोम सुकाज । पृथिवी मांहि तिसउ नही परिकर,
इन्द्र पास लेण गयउ आज ॥ सं०॥३॥ आख्यउ जुगप्रधान साहि अकबर,
जिनचन्द सरि गुरु वड़उ जतीश । सोम गयउ पूछण सुर लोके,
वासव कहस्यइ विसवा वीस ॥ सं०॥४॥ भामउ अनइ करमचंद भाखड़,
राज काज तणी सवि रीति। .. हरि तेड्यउ सोम तुं हिवणां,
पूछण धरम तणी परतीति ॥सं०॥५॥ नास्तिक मत थापइ गुरु नित नित,
सभा मांहि पोषइ सिणगार । इन्द्र धरम धुरंधर आण्यउ,
सत्यवादी साहां सिरदार ॥ सं०॥६॥
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