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श्री जिनसागरसूरि गीतानि (४१५ ) साहेली हे पूज्य थया पटधार ॥ सा.॥३॥ साहेली हे उठि. प्रभाते एहनइ,
साहेली हे प्रणम्यां जायइ पाप । साहेली हे समयसुन्दर कहइ अति घणउ, साहेली ए हुज्यो तेज प्रताप ॥सा.॥४॥
(१५) राग-प्रभाती सिणगार करउ रे साहेलड़ी रे,
बहिनी आवउ मिली बेलड़ी रे ॥ सि॥१॥ वांदउ गुरु मोहन वेलड़ी रे,
सांभलतां जाणे मीठी सेलड़ी रे ॥ सि०॥२॥ पाटू नी पूजि ओढउ पछेवड़ी रे,
पाटण नी नीपनी सखरी दोपड़ी रे ॥ सि०॥३॥ कठिन तुम्हारी क्रिया केवडी रे,
तुम्हे तो पदवी पामी तेवड़ी रे॥ सि०॥४॥ जिनसागर सरि नी महिमा जेवड़ी रे,
समयसुन्दर कहइ एवड़ी रे ॥ सि॥शा इति श्रीजिनसागरसूरि गीतानि।
संघपति सोमजी वेलि संघपति सोम तणउ जस सगलइ,
वरण अठारह करइ वखाण ।
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