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श्री जिनसागरसूरि गीतानि (४११ ) सुगुरु कुगुरु नउ एह पटंतर, निर्विरोध नयणे निरखउ री। समयसुंदर कहइ एह धर्म पक्ष, साचउ जाणी सहु हरखउ री। गु.॥३॥
(७) राग-धन्याश्री वंदउ बंदउ रे श्री जिनसागर सूरि वंदउ री। शांत दांत दर्शन गुरु देखी, अधिक अधिक आनंदउ री । श्री.।१। श्रीजिनसिंघ सूरि पटोधर, साह बच्छराज कुलचंद । सूत्र सिद्धांत वखाण सुणावत, जाणी अमत रस बिंदो जी। श्री.।२। मन वंछित पूरवइ ए मुनिवर, जिम सरतरु नो कंदोरी। समयसँदर कहइ सुगुरु प्रसादइ,चतुर्विध संघ चिर नंदउरी। श्री.।३।
(८) ढाल-आवउ रे सहियर सवि मिली जी. बहिनी आवउ मिलि वेलड़ी जी, सजि करि सोल शृङ्गार । पहिरी पटोली अोढउ चूनड़ी जी, तिलक करो तुमे सार ।। सुगरू वधावउ सखि मोतिये जी, श्री जिनसागर सूरि ।
आणंद हुयइ घरि पापणइ जी, अलिय विघन जायइ दूरि । स.।२। सखर करउ तुमे साथियउ जी, कक भरिय कचोल । चौक पूरउ तुम्हे चाउलइ जी, गीत गायउ रमझोल । सु.।३। नारि करउ तुम्हे लूछणा जी, लटकितइ हाथि उलास । विधि सुं करउ गुरू वंदणा जी, वास ल्यउ सदगुरु पास । सु.।४। खरतर गच्छ केरउ राजियउ जी, जिनसिंहसरि पटवार । जिनसागर सूरि चिरजयउ जी, समयसुन्दर सुखकार । सु.॥ ४ गुण समुद्र, ५ हियइ। [अनूप संस्कृत लाइब्रेरी से पाठान्तर]
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