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(४१०)
समयमुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
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श्री जिनसिंह सूरि पाटोधर, .. कहउ सामल सम को हइ रे ॥ जि० ॥२॥ वयरागी संवेगी सदगुरु,
वयर विरोध विपोहइ रे। समयसुन्दर कहइ देस विदेसे, - सहु श्रावक पडिबोहइ रे ॥ जि० ॥३॥
(५) राग-गुन्ड अइओ नंद नंदना, नंद नंदना साह बच्छराज के नंदना। अइओ चंद चंदना, चंद चंदना वचन अमीरस चंदना ॥१॥ अइश्रो फंद फंदना, फंद फंदना नहिं माया मोह फंदना। अइयो कंद कंदना, कंद कंदना; दुख दारिद्र निकंदना ॥२॥ अइओ इंद इंदना, इंद इंदना; जिनसागरसूरि इंदना। अइनो वंद वंदना, वंद वंदना; समयसुन्दर कहइ वंदना ॥३॥
(६) राग-तोड़ी गुरु कुण जिनसागर सूरि सरिखउ री । गु० । शीलवंत अनइ सोभागी२, पांच माणस पंडित परखउ री। गु.११ किंहांकाच किहां पांच अमृलिक, किहां अरहट कातण चरखउरी। किहां करीर किहां सुरतरु सुंदर,किहाँ मेर कंचन करखउ री।गु.॥२॥
१ कुण सुगुरु जिनसागर सरिखउ री, २ संवेगी, ३ कचकि,
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