________________
जिनसागरसूरि गीतानि
(४०६ )
गुहिर गंभीर मेघ जिम गाजति गयणा । ए एआ। नवतत भेद नीर पावइ चातक सयणा ॥३०॥२॥ बच्छराज साह वंश विभूषण गुण मणि रयणा । ए ए था। समयसन्दर गुरु के दरशि चित्त होत चयणा ॥ध०॥३॥
(३) राग-हमीर कल्याण जिन सागर सूरि गच्छपति गिरुयउ । जि०। कुण कहूं ए सदगुरु सरिखउ,
किंहा कंचणि किहां पीतल तरुयउ ।। जि० ॥१॥ श्री जिन शासन सोह चढावइ,
जिम सुगंध वाड़ि मांहि मरुयउ । समयसुन्दर कहि ए गुरु उत्तम,
किणहि ऊपरि चिंतइ नहीं वरुयउ ।। जि० ॥२॥
(४) राग-भूपाल ढाल-शालिभद्र आज तुम्हानइ आपणी माता जिनसागर सूरि गच्छपति गरुयउ,
खरतर गच्छ मांहि सोहइ रे। तप जप संयम कठिन क्रिया करि,
___ भवियण ना मन मोहइ रे ॥ जि० ॥१॥ युगप्रधान जिनचंद सूरीसरि, ___ पाट जोग काउ औ हइ रे।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org