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( ४०८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
श्रीबोहित्थकुलांबुधिप्रविलसत्प्रालेयरोचिप्रभा । भास्वन्मातृमृगांसकुक्षिसरसि श्रीराजहंसोपमा । श्रीमद्विक्रमवासि विश्वविदितः श्रीवत्सराजङ्गजाः। सन्तुश्री जिनसागराः खरतरे गच्छे चिरंजीविनः ॥७॥ इत्थं काव्यकदम्बकं प्रवरकं मुक्ता पुरः प्राभृतम् । विज्ञप्तसमयादिसन्दरगणि भक्त्या विधत्ते भृशम् ।। युष्मत्प्रौढतमप्रतापतपनो देदीप्यतां सत्त्वरः । यूयं पूरयत स्वभक्तयतिनां शीघ्र मनोवांछितम् ॥८॥
[अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेर ] श्री जिनसागरसूरि गीतानि
(१) राग-कनड़ी सखि जिनसागर सूरि साचउ । स० । श्री खरतर गच्छ सोह चड़ावद, जाणइ हीरउ जाचउ ।स०११ सुललित वाणि वखाण सणावइ, कहइ मत मायाराचउ।स० ए संसार असार अथिर छइ, ज्यूं माटी घट काचउ । स०१२। शांत दांत सोभागी सदगुरु, बड़े बड़े विरुदे वाचउ । स०। समयसुन्दर कहइ ए गुरु ऊपरि, चतुर हुवइ ते राचउ । स०।३।
(२) राग-शुद्ध नाट धन दिन जिन सागर सूरि निरखी नयणा । ए ए आ। सुललित सिद्धान्त वोचइ अमृत क्यणा ॥१०॥१॥
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