________________
श्री जिनराजसूरि गीतानि
(४०५ )
शीतल चंदन सारिखउ पूज जी, तेज तपइं तकि वार । हूँसि करी हेजइ मिलइ पूज जी, कदि न आणइ अहंकार । अ.।४। श्री जिनराजसूरीसरू पूज जी, तू कहियइ करतार । सोम निजर करि निरखजो पूजजी,समयसन्दर कहइ सार । अ. ५॥
राग-नट्ट नारायण श्री पूज्य सोम निजर करउ । चप करी आयउ तेरइ सरणे, अभिग्रह ले सबलउ आकरउ ।श्री.।१। भट्टारक जोइयइ भारी खम, पड़इ चाकर नह पांतरउ । नमतां कोप करइ नहीं उत्तम, बांक हुवइ जो घणी बातरउ । श्री.।२। अति ताण्यउ न खमइ अलवेसर, आज विषम पांचमउ अरउ। समयसुंदर कहइ श्रीजिनराजसूरि,अब अपणउ करि ऊधरउ ।श्री.।३।
ढाल-सूबरा ना गीत नी श्री पूज्य तुम्ह नइ वांदि चलतां हो,
चलता हो पाछा पग पड़इ माहरा हो । धरती भारणी होइ ध०,
चालइ हो चा. वेधक सुवचन ताहरा हो॥१॥ अउलु आवइ एम अउ०,
जाणू हो जाणं हो पाछो वलि जाउं वली हो।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org