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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
भागइ भट्टारक पद पायउ, भागइ दुरिजन दूरि गमउ । भागइ संघ कियउ वसि सगलउ, देस प्रदेसि विहार क्रमउ।।भ.॥२॥ तूठी अंबिका परतिख तुझनइ, अमीझरउ तीरथ उतमउ। श्रीजिनराजसरि अब मोनइ,समयसुंदर कहइ तुझ सरम॥भ.॥३॥
(२)
राग-आसावरी भट्टारक तेरी बड़ी ठकुराई। तखत बइठ करि हुकम चलावत, मानत सब लोगाई ।। भ.॥१॥ बिंब प्रतिष्ठा अमीझरइ प्रतिमा, ए तेरी अधिकाई। घंघाणी लिपि वांची बचाई, अंबिका परतिख आई ॥भ.॥२॥ श्रीजिनराजसरि गच्छनायक, जाण प्रवीण सदाई । समयसुंदर तेरे चरण शरण किए,अब करि अपणी बड़ाई।भ.॥३॥
(३) ढाल-नाहलिया म जाए गोरी रावण हरइ तूंतठउ घइ संपदा पूज जी, धइ संघवी पद सार । पाठक वाचक पद भला पूज जी, इंद्र इंद्राणी सार ॥१॥ अकल सरूपी तूं गुरु जीयउ, एह अचंभो थाई । अमत अमृत वसइ के विष नयण वसइ,निरति पड़इ निहि काय।अं.२। तू रूठउ धइ आपदा पूज जी, राय थका करइ रांक । मेर थको सरसव करइ पूज जी, वांका काढइ वांक | अ.३।
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