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श्री जिनसिंहसूरि गीतानि
(४०३ )
पनरे तिथि गुण पूरण साहेलड़ी ए,
श्री जिनसिंघसरीश ।। गु०॥ समयसुन्दर गुरु राजियउ साहेलड़ी ए, पूरवइ मनह जगीस ॥गु० ॥ ५ ॥
(३२) चतुर लोक राचइ ग णे रे, अवगण कोइ न राचह रे। परमारथ तुम्हे पीछज्यो रे, सहु को पतीजड़ साचा रे।। मन माहरउ गच्छनायक, मोघउ तुम्ह गणे रे। जाणु जे रहुँ आचारिज, चरणे तुम्ह तणे रे ॥०॥ सुन्दर रूप सोहामणउ रे, बोलइ अमत वाणी रे । नर नारी मोही रह्या रे, मुझ मनि अधिक सहाणी रे।।मन.। सोम गणे करि चन्द्रमा रे, सायर जेम गंभीरो रे। खमति घणी पूज ताहरी रे, संयम साहस धीरो रे ।३। मन.। सोभागी महिमा निलउ रे, सकल कला ग ण सोहइ रे। मानइ राणा राजिया रे, भवियण ना मन मोहइ रे।४। मन.। श्रीजिनसिंघसरीसरु रे, प्रतिपउ मूरिज जेमो रे।
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श्री जनराजसूरि गीतनि
राग-श्री भट्टारक तुझ भाग नमो। तूं अतुलीबल असम साहसी, सूर नहीं को तुझ समो॥भ.॥१॥
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